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१. ६. १४ ] हिन्दी अनुवाद मण्डलका राज्य त्यागकर दीक्षित मुनि हो गये और इन्द्र भी उनके चरण-कमलोंको प्रणाम करने लगे, तब इन्द्र और प्रतीन्द्र एवं हरिवंश व कुरुवंशके कच्छादि राजाओसहित उनके इस पोते मरोनिने भी अपने पितामहको ध्यानलीन अवस्थामें नमन किया और यह उसी समय प्रवजित हो गया। किन्तु शीन ही उन भगवान ऋषभदेवके दुश्चर महातपको असह्य पाकर जब अनेक अन्य दीक्षित राजा तपसे भ्रष्ट हुए, तब वह भी भ्रष्ट हो गया । वह वल्कल धारण करने लगा, वृक्षोंके फल खाने लगा और मिथ्यादष्टि हो कर असत्य बातोंपर दष्टि देने लगा । इस प्रकार नाना महान पापोंसे युक्त मिथ्यात्वरूपी शल्यके कारण उसने अनेक जन्मों में अनेक प्रकारके शरीर धारण किये, और वह भरतेश्वरपुत्र होकर भी मन में संशयके आघातसे चिरकाल तक संसार में भ्रमण करता रहा ॥५॥
मरोचिका जीव पुष्पोत्तर नामक स्वर्गके विमानसे आकर राजा सिद्धार्थ व रानी प्रियकारिणी
(त्रिशला ) का पुत्र हुआ उस स्वर्ग में देवरूपसे रहते हुए वह सहस्र वर्ष में एक बार आहार करता था और उतने ही पक्षों में श्वासोच्छ्वास लेता था। वहाँ समस्त दुःखों का विनाशकर अपने अवधि-दर्शन द्वारा छठी पृथ्वी तक की बातें जान लेता था। इस प्रकार परमागममें कहे हुए गुणोसे युक्त दिव्य प्रमाणवाले उस पुष्योत्तर विमान में रहते हुए जब अपनी उत्कृष्ट आयुप्रमाणके छह मास शेष रहे तभी सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र ने जगत्-कल्याणको कामना से प्रेरित होकर कुबेरसे कहा-इस जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्र में विशाल शोभाधारी विदेह प्रदेशमें कुण्डपुर नगरके राजा सिद्धार्थ राज्य करते हैं। वे आत्म-हितैषी हैं और श्रीधर होते हुए भी विष्णुके समान वामनावतार