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१. ४.८ ]
हिन्दी अनुवाद
लोकप्रिय हैं, और सभी उन्हें प्रणाम करते हैं। शबरी की यह बात सुनकर उस पुलिन्द ने अपने भुजदण्ड के भूषण धनुषको भूमिपर पटक दिया और सद्भावपूर्वक मुनिवरको प्रणाम किया। पापका नाश करनेवाले उन मुनिराजने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा - हे शबर तुझे धर्म- बुद्धि तथा शुद्ध ज्ञान और समाधि प्राप्त हो । अब तु जोवोंकी हिंसा मत करना, झूठ मत बोलना तथा कभी भी पराये धनको हाथ नहीं लगाना, परायी स्त्रियों के मुख कमलको ओर मत घूरना और उनके स्तन मण्डलपर हाथ नहीं चलाना । दोषोंसे दूषित होनेपर भी किसीको निन्दा नहीं करना, घरमें कितना साज-सामान रखना है इसकी सन्तोष पूर्वक सोमा कर लेना । वट, पीपल, पाकर, उमर व कठूमर इन पाँच उदुम्बर फलोंका, तथा मधु, मद्य और मांसका भोजन एवं रात्रिभोजन, दुःखके कारण बनते हैं । तू आखेट करना छोड़ दे । इसकी अपने मनमें दृढ़ प्रतिज्ञा कर ले | प्रतिदिन भक्ति भाव पूर्वक जिनभगवान्की पूजा करना । मुनिके इस उपदेशको सुनकर उस शबरने मानवीय गुणों का नाश करनेवाले मघु और मांसके स्यागकी प्रतिज्ञा ले ली। इस प्रकार वह निरक्षर शबर जीवदया में तत्पर हो गया और जिन धर्म में लग गया। काल व्यतीत होनेपर वह यम द्वारा निगला जाकर मरा और सौधर्म स्वर्ग में देव उत्पन्न हुआ ॥३॥
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अयोध्या नगरीके राजा भरत चक्रवर्ती
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उस स्वर्ग में दिव्य भोगोंको भोगकर सथा एक सागरोपम काल जीवित रहकर वह शबर स्वर्गसे च्युत हुआ । उस समय इस विशाल भारतवर्षमें कोशलदेश धन-धान्य से सम्पन्न था। उसकी राजधानी अयोध्या नगरी के नन्दनवन मयूरोंको ध्वनिसे रमणीक थे । उसके चारों ओर खाईका मण्डल था जो पानीसे भरा था और जिसके कारण वह नगरी शत्रुओंके लिए दुर्गम थी । वहाँके महल स्वर्णसे निर्मित और मणियोंसे जड़े हुए थे । वहाँ नागरिक लोग शुभ कर्म ही करते थे, अशुभ कर्म
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