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८. ४. २६ ]
हिन्दी अनुवाद
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धरने राजा श्रेणिक से कहा कि हे राजन्, जब भुवनपतियों द्वारा जिनके चरणारविन्दको नमन किया जाता है वे सन्मति जिनेन्द्र निर्वाण प्राप्त कर लेंगे, तब उसके तीन वर्ष, आठ मास और पन्द्रह दिवस इतना समयमात्र चतुर्थकालका शेष रह जायेगा, तभी वयोवृद्ध होते हुए तुम्हारी मृत्यु होगी और तुम डुबकी खानि थम पृथ्वी में जाकर उत्पन्न होगे। वहाँ तुम निरन्तर दुःखकी वृष्टि सहते हुए चौरासी सहस्रवर्षों तक नारकीयके रूपमें रहोगे । बहाँसे अवसर्पिणीके तृत्तीयकाल में अपने सब दुःख जालको दूर कर निकलोगे और चन्द्रके समान उज्ज्वल कोर्तिसे युक्त सर्वसुखकारी जगद्गुरु महापद्म नामक तीर्थंकर होगे ||४||
इति श्रेणिक धर्मलाभ व तीर्थंकर-गोत्रबन्ध विषयक अष्टम सन्धि समाप्त || संन्धि ८ ॥