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हिन्यो अनुवाद
चिलातपुत्रका राज्याभिषेक व अन्यायके कारण मस्त्रियों द्वारा
श्रेणिकका आनयन यहाँ भोगोंमें आसक्त रहते हुए एक दिन राजा उपश्रेणिनाने अपना राज्यभार चिलातपुत्रको सौंप दिया और धीरतापूर्वक आत्मकल्याणका कार्य अर्थात् दीक्षा ग्रहण सम्पन्न किया। चिलातपुत्र राजा तो हो गया, किन्तु बह उचित कार्य कदापि नहीं करता था। तब मन्त्रियोंने श्रेणिककुमारका पता लगाया और यह जानकर कि बे अब कांचीपुरमें जा पहुंचे हैं, उन्होंने एक बुद्धिमान दूतको कांचीपुर भेजा। उसने सुप्रभाके पुत्र थेणिक राजकुमारके पास जाकर उन्हें वृत्तान्त सुनाया कि तुम्हारे पिता तो चिलातपुत्रको राज्यपर बैठाकर विनुप्तिधारी मुनि हो गये, और इधर राज्य करते हुए चिलातपुत्रने यमके समान समस्त प्रजाको सन्तापित कर दिया है । बहुत कहनेरो क्या लाभ, आप शीघ्र ही हमारे साथ चलिए, राज्य सँभालिए और प्रजाके कष्टोका निवारण कीजिए। जिस प्रकार लोकप्रिय पचिनी सूर्यके अस्त होनेपर दोषाकर अर्थात् निशाधीश चन्द्रसे परिपीड़ित होती हुई प्रभाकर सूर्यदेवका स्मरण करती है, उसी प्रकार प्रजा परम आदर भावसे आपको प्रतीक्षा कर रही है ।।४।।
चिलातपुत्रका निर्वासन और श्रोणिकका राज्याभिषेक श्रेणिक कुमार अपनी नयी परिणीता अभयमती और वसुमित्रा नामकी प्रियपत्नियोंसे तथा राजा व पुरोहितसे पुछकर अपने पूर्व निवास राजगृहमें आया । आते ही उसने अनीतिवान् चिलातपुत्रको पराजित कर वहाँसे निकाल बाहर किया। फिर एक शुभ दिन समस्त सुहृद् और सुजनोंने उस सुन्दर बुद्धिशाली शत्रुरूपी गज रामूहको नष्ट करनेवालं राजकुमारको राजपट्ट बाँध दिया । अपने मधुर वचनों द्वारा सब लोगोंको सन्तुष्ट करता हुआ राजा श्रेणिक राजसिंहासनपर प्रतिष्ठित हुआ और दिव्यभोगोंका उपभोग करने लगा ।।५।। इति श्रेणिक-राज्य लाभ विषयक सप्तम सन्धि समाप्त
॥ सन्धि ७ ॥