________________
वीरजिणिवचरिउ
[७. ४. -१
अच्छइ तहिं भोयासत्तु जाम । एतह वि तासु ताटण ताम || दाऊण चिलायसुअस रज्जु । धीरेण आणुविउ अप्प-कन्जु । संजायउ राउ चिलायपुत्तु । सो करइ कयावि न कि पि जुत्तु ॥ ता मंतिहिं दृउ लहेवि सुद्धि । संपेसिउ कंचीपुर सुबुद्धि ।। गंभूत सुम्पह-सुमासु। उवएसिउ वइयर णिव-सुयासु ॥ रज्जम्मि थवेवि चिलाय पुत्तु । संजायउ तात्र मुणी तिनमुत्तु । सयल वि पय रज्जु करंतपण । संताविय तेग कयंतागण ।। किं बहुणा गच्छहुँ एहि सिग्घु ।
कुल रज्जु णिवारहि लोय-विग्धु ।। घत्ता-जाण-वल्लह पोमिणि जिह गय-गोमिणि परिषीडिय दोसायरेण |
संभाइ पहायक देउ दिवायरु तिद पई पय परमायरेण ॥४॥
खंडयं-अभयमई बसुमित्तउ पुळेचि कतो कतउ ।
रायाण स-पुरोहियं आयउ सो णिलयं णियं ।। गंपिणु चप्पेवि चिलायपुत्तु । गीसारवि धल्लिड अणय जुत्तु ॥ सुह-दिंग सुहि-सयहिं बधु पर्दु । सुंदर-मइ अरि-गाय-घड-घर१ ॥ तोसेवि सु-वयहिं सब लोय । थिन रज्जे दिव मुंजंतु भोय । ५।। इस वीर-जिगिंदररिए मेणिय-रज-लंभी णाम
सत्तमो संधि ॥७॥ ( श्रीचन्द्रकृत कहाकोसु संधि १२ से संकलित )