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वीरमिणिचरिउ
ता चंद्रण भणिउ को दुगु । को संसारि एत्थु किर सजणु ॥ धम्में सच्छु होइ भल्लाउ । पायें पुणु जण विपिय-गार ॥ इस - दिसु पत्त यत्त जय-सिरि-धव | आइय परमाणड़ें बंध
बंद वीर सामि परमप्पड | एयाणेय - वियम्पसमगच ।।
[ ५.५.२७
धत्ता - जिग-पय-पंक- मूलि बारह-बिहु विस्थिण्णव । चंद्रणाइ त घोरु तर्हि तक्खाणि पडिवगड |
इस वीरजिदिचरिए चंदपणं णाम पंचम संधि॥५॥
( महापुरा से