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५. ५.२६ ]
हिन्दी अनुवाद
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और वह भृत्य उसे अपने कुलरूपी आकाशके चन्द्र वृषभसेन नामक वणिक् के पास ले आया। एक दिन उसने सेठको प्यासा देखकर अपने केशको बांधा और वह जलका कलश उठाकर उसके पास आयी ||४||
सेठानी द्वारा ईर्ष्याविश चन्दनाका बन्धन, महावीरको आहारदान व सप-ग्रहण
इसी अवस्था में उसे धृष्ट, दुष्ट, कष्टदायी व क्रोधी सुभद्रा नामक सेठानीने देख लिया । चन्दनाके पापवृत्तिसे मुक्त और निःशल्य होनेपर भी उस दुष्ट सेठानीने उसका सिर मुड़वा डाला और उसके पैरोंमें लोहेकी सांकल बाँध दी। वह उसे प्रतिदिन कॉजी के साथ कोदोंका भात खाने को देती थी। इस प्रकार जब उसे दण्डित किया जा रहा था, तभी संसारके भ्रमणको छिन्न करनेवाले परमेष्ठी जिनभगवान् वहाँ भिक्षाके निमित्त आये । उनका पडगाहन करके चन्दनाने उन्हें बही काँजी और ओदनका आहार विधिपूर्वक दिया । यह पात्रदान रूपी वृक्ष तत्क्षण हो फलित हो उठा और आकाशसे पुष्पकलियोंकी वर्षा हुई । दुन्दुभि बजने लगी तथा बहुतसे माणिक्य चमचमाते हुए प्रचुरमात्रामें वहाँ गिरे । देवने आकर उस देवी को रत्नोंसे जड़े हुए नाना प्रकारके आभूषण प्रदान किये और उसके चरणों की वन्दना की। उन देशोंकी घोषणा व कोलाट्यध्वनिसे तथा जय जयके शब्दों के निनादसे आकृष्ट होकर रानी मृगावती अपने पुत्र सहित वहाँ आयी और उसने अपनी छोटी बहनको उसके गुणोंसे बड़ी होनेके कारण नमन किया। उस पापिनी वणिक् पत्नीने उसके साथ जो बुरा व्यवहार किया था, वह चन्दनाने नहीं बतलाया । सेठ और सेठानी दोनोंने उसके चरणोंमें नमन किया और कहा कि हम पापी वापसे पीड़ित थे अब हम तुम्हारे गरण में प्रविष्ट हुए हैं । हे