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४. ६. २६ ] हिन्दी अनुवाद छोड़कर नरकको गया । जिस प्रकार वह धूर्त भोगासक्त होनेके कारण इस विपत्तिमें पड़ा, वैसे ही स्त्रीके प्रेममें अनुरक्त हुआ मनुष्य मरणको प्राप्त होता है।
एक भीरु मनुष्य भवरूपी वनमें जा रहा था। उसके पीछे स्वेच्छारो मृत्यु नामक वेगवान् हाथी लग गया। उसके भयसे वह जीव भाग खड़ा हुआ ||५11
जन्मकूपका दृष्टान्त व जम्बूस्वामी तथा विद्युम्चरको प्रवज्या भागते-भागते वह एक विधि-विहित जन्मरूपी कूपमें जा गिरा जो कूलरूपी वृक्षकी जड़ोंके जालसे आच्छन्न था। कुपके मध्यमें ही वह उत्कृष्ट आयुरूपी बल्लीसे लटक गया। वहाँ उसे पंचेन्द्रिय रूपी मधुके बिन्दुका सुख प्राप्त हुआ । किन्तु उस बेलिको काल द्वारा कृष्ण और श्वेत वर्णोंसे विभिन्न रात्रि और दिवसरूपी चूहोंने काट डाला। उस बेलिके कटनेसे वह जीव नरकरूपी भयंकर सर्पके मुखमें जा पड़ा, जहां उसे पाँच प्रकारके घोर दुःखोंको भोगना पड़ा। कुमारके इस दृष्टान्तको सुनकर उन सभी श्रोताओं, अर्थात् कुमारकी माता, चोर और मरकत-मणि तथा सुवर्णके समान मनोहर-वर्णवाली उन श्रेष्ठ कन्याओंकी धर्ममें श्रद्धा उत्पन्न हो गयी। इसी समय आकाशमें सूर्यका उदय हो गया और जम्बूस्वामी घरसे निकल पड़े। राजा कुणिकने गजगामी जम्बस्वामीका निष्क्रमण-अभिषेक किया। कुमार रत्नोंकी किरणोंसे स्फूरायमान तथा श्रेष्ठ मंगल द्रव्योंसे भरी हुई शिविका (पालको ) में आरूढ़ हुए। वे तेजस्वी कुमार नाना कल्पवृक्षोंके पुष्पोंसे शोभायमान विपुलाचल पर्वतके मस्तकपर पहुंचकर, अपने पुत्र और स्त्रियोंके मोहका परित्याग करनेवाले ब्राह्मण, वणिक तथा क्षत्रिय पुत्रों सहित एवं उस विद्युच्चोर तथा उसके पाँच सौ साथी चोरों सहित वीर जिनेन्द्रके पास धर्मनन्दी सुधर्माचार्यसे