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धोरजिणिदचरिउ [४.५.२७जिह सो तिह जणु भोयासत्तउ ।।
मरइ बाप णारि-यगड रत्तर ।। धत्ता-णिय-इच्छइ पच्छइ भीरुयह जीवहु वेय-समग्गउ ।।
गासंतहु अंतहु भव-हणि मच्चु-गाम करि लग्गउ ||५||
णिवडिउ जम्म-कूद विहि-विहियइ । कुल-तम-मूल-जाल-संपिहियइ ।। लंबमाणु परमाउसु-वैल्लिहि । पंचिंदिय-महु-बिंदु-मुल्लिाहि ॥ काले कसण-सिपाहि विहिपणी। सा दियहुंदुरेहिँ विच्छिण्णी ।। णिवडिउ णरय-भीम-विसहर-मुहि । पंच-पयार-घोर-दाविय-दुहि ।। इय आयपिणवि तह आहासिउ । सम्वहि धम्मि स-हियाउ णिवेसिउ ।। जणणिइतक्करण वर-कण्णहि । मरगय-मणहर-कंचण-यण्णहि ।। ता अंबरि उग्गमिउ दिवायरु । जंबूदेउ परराइड सायरु ।। कूणिरण राएं गयनामिहि । णिक्खवणाहिसेउ किउ सामिहि ।। सिवियहि रयण-किरण-विप्फुरियहि ।
आरूढाउ यर-मंगल-भरियहि ॥ णाणा-सुर-तरु-कुसुम-पसत्थइ । विउलि विजल-धरणीहर-मत्थई ।। बंभण-वणियहिं पत्थिव-पुत्तहिं । पुत्त-कलत्त-मोह-परिचत्तहि ।। विज्जूचोरें समउ स-तेयउ ।
चोरहँ पंच-सएहि समयउ॥ णिचाराहिय-वीर-जिणिदहु। पासि सधम्म? धम्माणंदङ ।