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४. ५. २६ ] हिन्दी अनुवाद ले गया। उसी वनमें तुम्हारे समान अज्ञानी प्राणि-हिंसकोंने उस वणिक को कुशील बना दिया और वह आपत्तिमें पड़ कर घोर दुःखोंसे पीड़ित हुआ । यही दशा होती है उस जीवकी जो जिन-वचन रूपी रत्नोंसे रहित होकर नरकमें पहुँचता है ।।४।।
दृष्टान्तों द्वारा वाद-विवाद घालू विषय और कषाय रूपी चोरोंके संसर्गसे जीव उन्मार्ग-मामी, पापी और दुष्ट बन जाता है। जम्बूस्वामीकी यह बात सुनकर उस पराये धनका अपहरण करनेवाले चोरने अपने बुद्धि-विस्तारसे इस प्रकार उत्तर दिया-कोई एक पुत्रवधू अपनी साससे क्रुद्ध होकर वनमें गयी और वहाँ वृक्षके मूलमें आत्मघातकी इच्छा करने लगी। इस अवस्थामें उसे सुवर्णदारु नामक एक मृदंग बजानेवालेने देखा। इसकी बात सुनकर उस मुर्खने उसके आभूषणोंके लोभसे उस घरकी कमल-लक्ष्मी धवलाक्षी काम-रहित जीवनसे विरक्त हुई महिलाको मरनेका उपाय बतलानेका प्रयत्न किया। उसने अपने मृदंगपर पैर रखकर वृक्षसे लटकते हुए पाशको अपने गलेमें डाला किन्तु इसी बीच वह मृदंग फिसलकर गिर गया और वह दुष्ट दुराशय फाँसीसे लटककर मर गया ! उसको मरा देखकर उस पुत्रवधूने उष्ण निःश्वास छोड़ते हुए घर लौट जाना उचित समझा। जिस प्रकार वह मृदंगबादक उस वधूके धन-कंकन आदिके मोहसे मर। बसे ही तू मोक्षसूखके लोभसे मत मर।
कुमारने उत्तर दिया-एक ललितांग धूर्त क्रिसी नगरमें रहता था और राग-रंगमें आसक्त था । इसको देखकर राजाकी मणिमेखला-धारिणी एक रानी काम-पीड़ासे विह्वल हो उठी। उसने अपनी यात्रीके द्वारा उसे पश्चिम द्वारसे बुलवा लिया और उसके साथ रमण किया। यह बात परिवारको ज्ञात हो गयी और राजाको उसकी सूचना मिल गयी 1 तब रानी ने उमको छिपानेके लिए अपने अशुचि मलसे पूर्ण शौच-स्थानमें हलवा दिया। वहाँ कोड़े उसे खाने लगे और वह दुःख पाते हुए प्राण