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धौरजिणिवचरित पत्ता-तउ लेसइ होसइ पर जइ होएप्पिणु सुयकेवलि ।।
हय-कम्मि सुधम्मि सुणिन्वुयह जिण-पय-विरइय-पंजलि ||६||
पत्तइ बारहमइ संवच्छरि। चित्त-परिहिह वियलिय-मन्टरि ।। पंचमुणाणु पट्हु पावेसइ। भवु णामेण महारिसि होसइ ॥ तेण समउ महिनलि बिहरेसइ । दह-गुणियर चत्तारि कहेसइ ।। वरिसई धम्मु सव्व-भवोहहूँ। विद्धंसिय-बहु-मिछा-मोहहूँ । अंपिाको ति होला महु पहु-वंसहु उण्णइ होसइ ।।
इय वीरजिणिदचरिए जम्बूसामि-पवजावण्णणो
णाम चउत्थो संधि ॥४॥
( महापुराणु संधि १०० से संकलित )