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वौरमिणिवचरिउ [३. ३, १५पढिवि सुणिवि आयण्णिवि णिम्मलि ।। पयडिउ मामइएं इय महियलि 11 कम्म-क्लय-कारणु गणि-दिहउ । एवं महापुराणु भइ सिहर ॥ एत्थु जिणिद-मग्गि ऊणाहिट । युरि-विहीन साहिन !! तं महु खमहु तिलोयहु सारी । अरुहुग्गय सुयएवि भडारी ।। चलषीस वि महु कटुस-खयंकर |
देंतु समाहि बोहि तित्थंकर ॥ घन्ता-दुहु छिंद ज णदउ मुयणयलि णिरुवमु कण्ण-रसायणु ॥
आयपणउ मण्णउ ताम जणु जाम चंदु तारायणु ॥३||
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दरिसल मेह-जालु वसुझारहि। महि पिच्चर बहु-धणा-पयारहि ।। गंदउ सासणु वीर-जिणेसहु । सेणिउ णिग्गउ गरय-णिवासह ॥ लग्गड पहवणारंभहु सुरवइ ।
दउ पय सुह गंद णरवइ ।। जैवउ देसु मुहिक वियंभ3 1 जणु-मिच्छत्तु दुचित्त णिसुंभउ ।। पडिवष्णिय परिपालण-सूरहु । होउ संति भरहहु वर-वीरहु ॥ होज संति बहु-गुण-गणवंतहँ । संसह दयवंसहं भयवंतहूँ ।। होउ संति संतहु दंगइयहु । होउ संति सुयणहु संतइयहु ।। जिया-पय-पणमण-वियलिय-गन्वर ।
होउ संति णोसेसह भव्वाह् ।। घत्ता--इय दिव्वहु कम्वहु तणउ फलु लहु जिणणाहु परच्छड ।।
सिरि-भरहहु असाहु जहि गमणु पुरफयंतु तहि गच्छउ ॥४॥