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वीििणवचरित [२. ५. २१- । पोसंतु अहिंस खंति ससहि । भयवंतु संतु विहरंतु माहि ॥ गड जिम्यि-गामा अइ-णियाड ।
सुविउलि रिजुकूला-णइहि तडि ॥ पत्ता- मोर-कीर-सारस-सरि सुजाणम्मि मणोहरि ।।
साल-मूलि रिसि-राणउ रयण-सिलहि आसीणउ ।।५।।
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छट्टेणुबवासें ह्यदुरिएं। परिपालिय-तेरह-विह-चरिएं । वइसाह-मासि सिय-समि दिणि | अवरण्डह जायद हिम-किरणि ।। हत्थुत्तर-मझ-समासियइ। पटु बडिवण्णा केवल-सियइ ।। घणघणई घाइकम्मई इय है ।। खुहियाई झत्ति तिणि वि जयई ।। घंटा-रव हरि-रव पडह-रच' । आया असंख सुर संख-रव ।। वंदियउ तेहिं वीराहिवाइ सुत्तामउ चरण-जयलु णवई॥ किउ समवसरणु गय-सर-सरण : उवट्ठ तिहुवर्ण-जण-सरणु॥ आहेडलेण पप्फुल्ल-मुहु । सेणिय हार्ड आणि दिय-पमुहुः ।। महु संसयेण संभिषण मई। जिणु पुच्छिा जीवहु तणिय गइ ।। गाहें महु संसउ णासियउ ।। मई अप्पड दिक्खाइ भूसिया।। मई समउ समण-भाषहु गयई।
पावइयई दियह पंचसयह ।। घत्ता-पत्ते मासे सारणि बहुले पातिवए दिणि ।।
उप्पण्णउ न जु-बुद्धिष्ट महु सप्त वि रिसि-रिद्धि |६||