________________
:
२. ५. २० ] हिन्दी अनुवाद
इसी बीच रुद्र के द्वारा किये गये उस अत्यन्त भयंकर तथा भीषण पापभावसे प्रेरित होकर किये गये उपसगको सहनकर वे परमेष्ठी भगवान् महावीर जो शत्रु-मित्र तथा जीवन और मरण आदि द्वन्द्वोंमें समता-भाव रखते थे, वे एक दिन भव्योंके उद्धारकी भावना रखते हुए तथा जीवोंकी विचित्र गतिको समझते हुए आहारके निमित्त कौशाम्बीपुरमें प्रविष्ट हुए। तभी सांकल से बँधे हुए पैरोंसे युक्त उस दु.खी चेतकराज पुत्रीने भगवान्के सम्मुख आकर उन्हें प्रणाम किया ॥४॥
चन्दना द्वारा भगवानको आहार-दान चन्दनाने अपने कोदोक भातको छाँछसे मिश्रित कर और कटोरेमें रखकर मुनिराजकी हथेली में अर्पित कर दिया। भगवान्ने जब उसे अपनी दृष्टिसे देखा तो वह अठारह प्रकारके स्वादिष्ट और नाना रसोंसे युक्त भोजन बन गया। चन्दनाके भगवानको दिये उस आहार-दानके प्रभावसे उसकी गतिमें बाधा डालनेवाली वे लोहेकी बनी सांकले टूटकर गिर गयौं जिरासे सज्जनोंके अन्तःकरण और नेत्रोंको बहा आनन्द हआ । देवोंने भ्रमरोंके मुखसे प्रेरित झंकारयुक्त मन्दार पुष्पोंकी वर्षा को । उन्होंने नाना वर्णोसे विचित्र तथा .अपनी फैलती हुई किरणोंसे स्फुरायमान रत्नोंकी भी वृष्टि की, दुन्दुभि भी बजायी और साधु-साधुका उच्चारण भी किया। भला गुणीजनोंके संसर्गसे किसे उल्लास नहीं होगा? विद्वानोंने उस कन्याके गुणोंकी स्तुति की। उसका अपने मातापिता आदि बान्धवोंके साथ संयोग भी हो गया ।
सन्मति भगवान्ने दुष्कर्मोंका हनन करते हुए बारह वर्ष तक तपश्चरण किया । अपनी उस चन्दना नामक बहनके अहिंसा और