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________________ प्रामाणिक ग्रन्थ + १ प्रमाणं परमं श्रुतिः । —मनुस्मृति २०१३ धर्म को जानने की इच्छा करनेवालों के लिए अति-वेद हा प्रमाण है। २. तमेव सच्चं निस्संक, जं जिणेहि पवेइयं । -आचारांग | वही बात सत्य एवं नि:संदेह है, जो 'जिन' भगवान् ने कही है। ३. देश-कालानुरूपं धर्म कथयन्ति तीर्थंकराः । -उत्तराध्ययन चूणि २३ तीर्थयार देश और काल के अनुरूप धर्म का उपदेश करते हैं । ४. अत्थं भासंति अरहा, सूत्तं गंथं ति गणहरा निउणं । सासणस्स हियठाए, तओ सुत्त पवत्त । -आवश्यक-नियुक्ति ६२ अरिहन्तदेव अर्थरूप वाणी बोलते हैं और निपुण गणधर उस वाणी को सूत्ररूप से गूथते हैं । तत्पश्चात् शासन के हितार्थ सूत्र का प्रवर्तन होता है। ५. सुत्तं गणहरइयं, तहेव पत्तेयबुद्धरइयं च । सुयके वलिणा रइयं अभिन्नदसपुग्विणा रइयं ।। -वसाधु तस्कन्धवृत्ति
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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