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यक्तृत्वकला के बीज
५. नबि अस्थि नवि य होई, सज्झाएण समं तबोकम्म ।
--चन्द्र प्रज्ञप्ति २६ स्वाध्याय के समान न तो कोई तपस्पा है और न ही भविष्य में
हो सकती। ६. बहुभवे संचियं खलु, सज्झाएण स्खणे खवेई ।
-- चन्द्रप्रनप्ति ६१ अनेक भावों में संचित दुष्कर्म को स्वाध्याय द्वारा व्यक्ति क्षण
भर में खपा देता है। ७. सज्झाए वा "सध्वदुक्खविमोक्खणे ।
-उसराध्यत २६१० स्वाध्याय सब दुःखों से मुक्त करनेवाला है । सज्झाएणं नाणावरणिज्ज कम्म खवेइ ।
-उसराध्ययन २६११८ स्वाध्याय से व्यक्ति ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है। ६. स्वाध्यायादिष्टदेवता- संप्रयोगः ।
..पातंजलयोग दर्शन २।४४ स्वाध्याय मे इष्टदेव का साक्षात्कार होता है । १०. स्वाध्याय के अभाव में अनेक आगम विच्छिन्न हो गये।
और जो विद्यमान हैं, यह स्वाध्याय की ही देन है। ११. स्वाध्याय के लिए तीन बातें आवश्यक हैं
एकाग्रता, नियमितता और विषयोपरति-निविकारिता १२. सज्झाए पंचविहे पण्णत्त, तं जहा–बायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा ।
- भगवती २५।७।८०२