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________________ ३६ १. सुष्ठु आ-मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः । २. ४. स्वाध्याय सशास्त्र को मर्यादासहित पढ़ने का नाम स्वाध्याय है । सपोहि स्वाध्यायः । स्वाध्याय स्वयं एक तप है । ३. सज्झायं कुब्बतो, कुतो पंचेदियसंबुडो पंवेदिय संबुडो तिगुत्तो य हवद य एगग्गमणो, विणएण समाहिओ भिक्खू । -मूलाचार ५।२१३ 1 स्वांग ५/३१४६५ टीका सज्झायसज्झाणरयस्स ताइणो, अपावभावस्स तबे विसुज्झइ जसि मलें पुरे कडं, पञ्चेन्द्रियसंवृत, त्रिगुप्तिगुप्त एवं विनयसमाधियुक्त मुनि स्वाध्याय करता हुआ एकाग्रमन हो जाता है । - संत्तिरीय आरण्यक २११४ ७३ रयस्स । समीरियं रूपमलं व जोडणी 11 - कालिक ८६३ r जैसे अग्नि द्वारा तपाये हुए सोने-चांदी का मैल दूर हो जाता है, वैसे ही स्वाध्याय-सदध्यान में लीन षट्कारक्षक, शुद्धअन्तःकरण एवं तपस्या मे रक्त साधु का पूर्वसंचित कर्म - मैल नष्ट हो जाता हैं ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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