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१. सुष्ठु आ-मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः ।
२.
४.
स्वाध्याय
सशास्त्र को मर्यादासहित पढ़ने का नाम स्वाध्याय है । सपोहि स्वाध्यायः ।
स्वाध्याय स्वयं एक तप है ।
३. सज्झायं कुब्बतो, कुतो पंचेदियसंबुडो पंवेदिय संबुडो तिगुत्तो य हवद य एगग्गमणो, विणएण समाहिओ भिक्खू ।
-मूलाचार ५।२१३
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स्वांग ५/३१४६५ टीका
सज्झायसज्झाणरयस्स ताइणो,
अपावभावस्स तबे
विसुज्झइ जसि मलें पुरे कडं,
पञ्चेन्द्रियसंवृत, त्रिगुप्तिगुप्त एवं विनयसमाधियुक्त मुनि स्वाध्याय करता हुआ एकाग्रमन हो जाता है ।
- संत्तिरीय आरण्यक २११४
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रयस्स ।
समीरियं रूपमलं व जोडणी 11 -
कालिक ८६३
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जैसे अग्नि द्वारा तपाये हुए सोने-चांदी का मैल दूर हो जाता है, वैसे ही स्वाध्याय-सदध्यान में लीन षट्कारक्षक, शुद्धअन्तःकरण एवं तपस्या मे रक्त साधु का पूर्वसंचित कर्म - मैल नष्ट हो जाता हैं ।