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संयोजक
1 १. अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम् । अयोग्य: पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः ॥
-शुक्रनीति मन्त्र के बिना कोई अक्षर नहीं, औषधि के बिना कोई जड़ी नहीं और आदमी कोई अयोग्य नहीं, लेकिन उन्हें यथास्थान जोड़नेवाला व्यक्ति दुर्लभ है।
२. काचं मणि काञ्चनमेकसूत्र,
थ्नासि बाले ! तव को विवेकः । महामतिः पाणिनिरेकसूत्र,
श्वानं युवानं मघवानमेति ।। हे बाले ! कांच, मणि थौर कांचन को एक सूत्र में क्यों पिरो रही हो ! ऐसे एक विद्वान के पूछने पर उस स्त्री ने कहा--- मुझे क्या टोक रहे हो ? महाबुद्धिमान पाणिनि ऋषि ने श्वान, युवान एवं मघवान को भी एक सूत्र में पिरो दिया।