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आत्मा का स्वरूप
१. अस्वी सत्तः, पासा पनि ।
-आचारांग-५६ आत्मा का मूलस्वरूप अरूपी है । उसको कहने के लिए कोई शब्द नहीं है । वास्तव में यह अवाच्य है। २. सव्वे सरा नियति,
तक्का जत्थ न विजई। मई तत्थ न गाहिया ॥
-~आचारांग ५१६ आत्मा के वर्णन में सबके राब शब्द नियत हो जाते है-समाप्त हो जाते हैं ! यहो तर्क को गति भी नहीं है और न बुसि ही उसे ठीक तरह
ग्रहण कर पाती है। ३. नेषा तर्केरण मतिरापनेमा ।
--कठोपनिषद-२६ यह आत्म-ज्ञान कोरे तर्क-वितर्को से झुटलाने जैसा नहीं है । ४. अमुर्तरचेतनो भोंगी, नित्यः सर्वगतोऽक्रियः ।। अकर्ता निर्गुणः सूक्ष्म, आत्मा कपिलदर्शने ।
-स्थाद्वादम जरी १५ टोका सांख्य दर्शन में आत्मा अरूपी है, चेतनायुक्त है, कर्मफल भोगनेवाली है, नित्य है, सर्वव्यापी है, क्रियाशून्य है, अकर्ता है, निर्गुण है और सूक्ष्म है।
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