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५. से न स . न स्वे, न गंधे, न रसे, न फासे ।
--आचाराग-५१६
आत्मा न शब्द है, न रूप है, न गन्ध है, न रस है और न स्पर्श है। ६. आत्माऽगृह्यो, न हि गृह्यते, अशीयों न हि शीर्यते । असंगो, न हि सज्यते; असितो न हि व्यथते, न रिष्यो ।
- वृहदारण्यक उपनिषद-३।६२६ आत्मा अग्राम है, अतः वह पकड़ में नहीं आता; आत्मा अशीयं है, अतः वह क्षीण नहीं होता, आत्मा अमंग , तः वह सी से लिप्त नह। होता, आत्मा असित है--बंधन रहित है, अतः वह व्यषित नहीं होता,
नष्ट नहीं होता। ७. नो इन्द्रियग्गेज्म अमृत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निच्वं ।
-उत्तराध्ययन-१४।१६ आत्मा आदि अमूर्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त होते हैं,
वे अविनाशी-नित्य भी होते हैं । - ८. अरिदियगुणं जीवं, दुग्नेयं मंसचक्रबुणा ।
___-दशवकालिक नियुक्ति भाष्य ३४ आत्मा के गुण अनिन्द्रिप-अमूत्त है, अतः उन्हें चर्म-चक्षुओं से देख पाना कठिन है।