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खठा भाग : पहला कोष्ठक
पैसे बिन नारी घरवारी घुटि करे
पैसे बिन यार-दोस्त आँख ही छिपाई है। कहे कवि "देवीदास", याही जग साची भाष,
कलियुग के वर्तमान पैसे की बड़ाई है। ८. जिसके पास नहीं है पंसा। जग में उसका जीवन कैसा ?
-हिन्दी पण ६. पेसादार नी बकरी मरी ते बधा गामे जाणी। गरीबनी छोकरी मरी ते कोई ए न जाणी।
--गुजराती कहावत १०. पैसे की कीमत भिवारी बनकर मांगने से जानी जाती है। ११. पैसा मां कोई पुरो नहीं, अक्वालमां कोई अधूरो नहिं ।
--गुजरातो कहावत १२. किसी भी कार्य का ध्येय पैसा नहीं होता, लेकिन अभानवश लोग मान
बटे हैं। ज्ञान से देखें तो सरकार का ध्येय प्रजा का रक्षण करना है, माता-पिता का ध्येय संतान-पालन है, न्यायाधीश का ध्येय न्याय करना है. वकील का ध्येय न्यायी को बचाना है, हा पटर-वंद्य-हकीमों का ध्येय रोगियों को स्वस्थ बनाना है, शिक्षकों का ध्येय अशिक्षितों को शिक्षित बनाना है, लोकमान्यतिलक तथा महात्मागांधी जैसे महापुच्षों का ध्येय देश को मुखी और स्वतंत्र करना था, किन्तु पंसे से घर भरना नहीं।।
-संकलित १३. न्याय-अन्याय का पंसा
अम्बु अम्बासा एक टोपी सीकर एक पंसा पैदा करता था। दूसरा मित्र अन्याय से धन कमाता था। एक दिन उसने अन्धे को एक मोहर दी.
धे ने शराब पीकर रंडीबाजी की। प्रथम ने मरा-पक्षी खानेवाले गरीब को एक पैसा दिया । उसने मांस खाना छोडा, चनों से निर्वाह किया, बुद्धि मुधरी । कारण न्याय का पंसा था ।