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________________ १८६ (ख) पैसा १. पैसा पाप का मूल हैं, फिर भी विनिमय का साधन है, आवश्यकता का पूरक है, बेइज्जती व अकस्मात् घात का नाशक है, मान-प्रतिष्ठा का दायक है, आथमादि-लोकोपकारी प्रवृत्तियों का संचालक है। महाय युद्धों का उपशामक है, भोग-विलास की इसके बिना अशक्यता है तथा हाथ का मैल होने पर भी करोड़ों हाथ इसके लिए दौड़ रहे हैं । - पैसे के प्रशासक वक्तृत्वकला के बीज भगवान हो गया । सम्मान हो गया । २. पैसा बना मनुज के कर से, आज वहीं क्रय करता मानव का पैसा, उस ही का गई मनुजता दूर विश्व से पशुता का साम्राज्य हो गया। कहाँ गया वह रागराज्य, यह देखो रावणराज्य हो गया । P -- हिन्दी कविता ३. "तुलसी" इस संसार में, मतलब का व्यवहार । जब लम पैसा गाँठ में तब लग लाखों यार || 1 ४. पैसा जग में प्राण, पैसो ही जग में प्रभु । पैसो से सम्मान चिहुँ दिशि होने 'चकरिया' ! 5. Money my God, woman my guide. मनी माई गॉड वुमन माई गाइड पैसा मेरा परमेश्वर और स्त्री मेरी अगुआ । ६. कठेई जावो इस री खीर है। -- सोरठा संग्रह –अंग्रेजी कहावत - राजस्थानी कहावते तांबे की मेख, तमासा देख || ७. पैसे बिन तात कहे, पूत है कपल मेरो, पैसे बिन मात कहे मोहि दुखदायी है। पैसे दिन काका कहे, कौन को भतीज तीज, पैसे बिन सासू कहे कौन को जमाई है || 4 C
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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