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________________ Sण भाग : तीसरा कोष्ठक ६. पांचे मित्र, पच्चीसे पड़ोसी ने सोए सगो। -गुजराती कहावत ७. भज कलदारं भज कलदारं-मज कलदारं मूढमते ! -संस्कृत कहावत ८. रुपिय कनें रुपियो आवं। -.-राजस्थानी कहावत जाट के पास एक रुपया या, इधर टकसाल में कपमों के ढेर लग रहे थे। इसमें मुन्न , या भारों के ना ? आता है । जाट ने अपना रुपया उन्हें दिखाया। वह अकस्मात् हाथ से छूट कर टकसाल के रुपयों के पास चला गया । जाट देखता ही रह गया । ६. भरे ही को भरती है दुनियाँ मदाम । समंदर को जाते हैं दरिया तमाम् ॥ --उर्दू शेर १०, झपियों हाथ से मेल है। -राजस्थानी कहावत ११. खरी कमाई का रुपया-मारवाड़ के एक राजपूत ने दिल्ली के बादशाह के यहाँ नौकरी की। बारह वर्ष बाद उसे एक रुपया मिला । उसने उससे चार अनारें खरीदी और उन्हें बच्चों के लिए घर भेज दिया । वे चार लान में बिकीं। एक वर्ष बाद स्वदेश जाते समय नौकरी मांगने पर उसे म्न जाने से एक रुपया मिला और वह रास्ते में ही ग्यचं हो गया । विस्मित राजपूत ने बादशाह से भेद पूछा । उत्तर मिला कि पहला रुपया पसीने की कमाई का था (मैंने बस्तीम दिन लोहा कूट कर कमाया था) और दूसरा रुपमा प्रजा रो छीनकर लिया हुआ था।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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