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साहित्य
१. साहितस्य भावः साहित्यम् ।
–बाबू गुलावराय जो हित के साथ हो अथवा जिससे हित का संपादन हो, उसे साहित्य कहते हैं। विचारों का प्रकाशितरूप ही साहित्य है। प्रकाशन हृदय से, स्पर्श में, मुस्कान ने, बाणी गे एवं मौन मे होता है।
. .-जमनालाल जैन ३. साहित्य दो प्रकार का होता है....सामयिक और
शाश्वत । ४. वहीं काव्य और वहीं साहित्य चिरंजीवी रहेगा, जिसे
लोग सुगमता से पाकर पचा सकेंगे। .. महात्मा गांधी ५. तात्त्विक-साहित्य को सरस एवं सरल भाषा में लिखना बहुत कठिन है।
-धनमुनि साहित्य संगीतकलाविहानः |
साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीनः, तृणं न खादन्न जीवनानस, तद्भागधेयं परम पशुभाम् ।
—भर्तृहार-नीतिसत १२ जो मनुष्य साहित्य एवं संगीत की कला से शून्य है, वह बिना सींग-पूछ का साक्षात् पास है । जो तृण-घास खाये बिना ही
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