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________________ ५ धन का उपयोग १. घन उसका नहीं, जिसके पास है, बल्कि उसका है, जो उसका उपयोग करता है । - फ्रेंकलिन २. धन और विद्या का उपयोग नहीं करनेवालों ने व्यर्थ ६. जिसने घन से यश कमाया और भोगा वह भाग्यवान कमाया और छोड़कर मर गया वह भाग्यहीन | ४. उत्तमं स्वार्जितं भुक्त, मध्यमं पितुरजितम् । कनिष्टं भ्रातृवित्त' च स्त्रीवित्तमधमाधमम् ॥ - सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ १६६ अपना कमाया धन खाना उत्तम है, पिता का कमाया हुआ खाना मध्यम है, भाई का घन खाना अधम है और स्त्री का धन खाना धमाधम है । ५. दानं भोगो नाश-स्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । यो न ददाति न भुङ्क्त, तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥ १८१ कष्ट उद्याया । और जिसने बन - - पञ्चतन्त्र २११५७ धन की तीन गतियाँ होती हैं-दान, भोग और नाश । जो व्यक्ति न तो किसी को देता एवं न स्वयं खाता-पीता, उसके धन को तीसरी गति अर्थात् नाश होता है । ६. दातव्यं भोक्तव्यं, धनविषये संचयो न कर्तव्यः । पश्ये मधुकरीणां संचितमर्थं हरन्त्यन्ये ॥ A - पञ्चतन्त्र २ १४४
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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