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धन का उत्पादन
१. न क्लेशेन विना द्रव्यम् ।
-वक्षस्मृति कष्ट सहे विना धन नहीं मिलता । २. विद्या उद्यम बुद्धि बल, रूप तथा संयोग । षट्कारा धन लाभ के, जानत है सब लोग ||
-पं. भद्धारामजी ३ सप्त बित्तागमा घा, दायो लाभः कयो जयः। प्रयोगः कर्मयोगश्व, सत्प्रतिग्रह एव च ।।
-मनुस्मृति १०११५ धन की प्राप्ति के सातमार्ग धर्मयुक्त हैं—(१ दाय-पिता आदि का धन, (२) लाभ, (३) क्रम-व्यापार से प्राप्त, (४) जय–मुख में प्राप्त, (५) प्रयोग-ध्याज से प्राप्स, (६) कर्मयोग-खेती आदि से प्राप्त,
(५) सत्प्रतिग्रह-अच्छे दाता से दान में प्राप्त । ४. यथा मधु समादत्ते, रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः । तद्वदन्मिनुष्येभ्य, आदद्यादत्रिहिसया ।।
--विदुरनीति २०१७ जैसे-भौंरा पुप्पों को नष्ट किये बिना उनमें से मधुग्रहण कर लेता है, वसे धन के मूलसाधन को नष्ट किए बिना उसमें में घन ग्रहण करना चाहिए।
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