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________________ --- बडा भाग : लीसरा कोड ६. हुवे पाताल-तप लिलाड़। . उदगी काई बोले है. जमों मायलो बोल है। ..-राजस्थानी कहावते 3. जिहदी कोठी दाने; ओहदे कमले वि सियाने। --- यह १. खिस्मा लर तो चाहे सो कर । . गांडे होय धन, सो हाजर जन । . गकर्मी नाँ साला धरणा, लीला वन नाँ सूडा घणा। --गुजराती कहावते ६. माया थारा तीन नाम, फरसो, फरसू, फरसराम । -रामस्थानी कहायत १०. अशा भक्त—यह एक दिन मैले काहों से मन्दिर में दर्शनार्थ गया किन्तु उसे अन्दर नहीं जाने दिया। दूसरे दिन बन ठन कर गया। लोगों ने कहा- आइये ! आदर आकर दर्शन कर लीजिए । भक्त ने अन्दर जाकर अपने आभूषण आदि मूर्ति के सामने रख दिये और कहने लगा-करो भाई भगवान के दर्शन, तुम्हारी ही पूछ है । ईश्वरचन्द्र विद्यासागर-इनको लाई हेस्टिग की तरफ से चार घोड़ों की बग्यो बबसी हुई थी। ये राज्य-सभा के मेम्बर थे । एक बार "दीगापतिया नरेश" के निमंत्रण पर ये सादी पोशाक में दल ही चले गये । अन्दर नहीं घुमने दिये, फिर बग्घी चढ़कर लाट-बाट से गये, सब बड़े होकर उनके परी पड़ने लगे तब उन्होंने कहा -"मेरे नहीं घोड़ों के पैर पकड़ो।" - १२. चुल्हा फूकनियां-निधन भाई को मौजाई बहन ने 'चूल्हा फकनियाँ" कहा । फूटी हांडो में ठंडी रोटी और खट्टी छाछ खाने को दो। फिर धनी बनकर आया तो पात्रों पकवान परोसे । भाई ने रुपों-मोहरोंहीरों-पन्नों के थाल भरकर रखते हुए कहा-लो भाई ! बहिन के पकवान खाओ 1 बहिन लग्नित हुई ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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