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________________ السلم धन का प्रभाव १. यस्यास्ति वित्त स नरः कुलीनः, स पण्डितः स श्रतवान् गुमशः 1 स एव बक्ता स च दर्शनीयः, सर्व गणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ।। भर्तृहरिनीतिशतक ४१ जिसके पास धन है-वस्तुतः वही कुलवान है, वही पण्डित है, वही झालो है, वही गुणज है, वही वयता है और बही दर्शनीय है। सारे गुण धन के आश्रित रहा करते हैं। २. पूज्यते यदपूज्योऽपि, यदगम्योऽपि गम्यते । वन्द्यते यदवन्द्योऽपि, स प्रभावो धनस्य च ॥ -पञ्चतंत्र १७ जो अपूज्य पूजा जाता है, अगम्य में गमन किया जाता है और अवन्दनीय को वन्दना को जाती है—वह सारा धन का ही प्रभाव है ! ३. धननिष्कुलीना: कुलीना भवन्ति, धनरापदं मानवा निस्तरन्ति। धनेभ्यः परो बान्धवो नास्ति लोके, धनान्यर्जयध्वं-नान्यर्जयध्वम्।। नीति सार धन से अकुलीन, कुलीन बन जाते हैं। धन से मनुष्य आपत्ति को पार कर देते हैं । संसार में धन के समान दूसरा कोई भी स्वजन नहीं है, अतः धन का जनार्जन कगे ! धन का उपार्जन करो !! ४. धन से बड़े-बड़े पापों पर पर्दा पड़ जाता है। --प्रेमचन्द ५. धन भाग्य की गड़ी है। -हिन्दी कहावत
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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