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________________ चौथा भाग : हुमा गोष्ठ (ज) जगत रो दोष देखता-देखता अाख अघाईजी ही कोनी। एक दिन एक छोटो सो' क रावलियो आँख ने देखण नै आंख में बड़ायो। आँख रीस स्यू लाल हुगी पण राबलियो क्याँ रो डरै हो ? आखर में आँख रोवण __ लागगी जद लार छोड़ी। ' (स) दही पूछ्यो-.-झेरणा, रोजीनां मथ-मथ' र म्हारो माजनों बिगाड़ो, की धार ही पल्ले पड़े है क नी ? झेरणों वोल्योकीड़ याँ तो कालजो रात्यू चूटे ही है और' स की देख्यो नी ! (ङ) हंसतो-हँसतो ही फुल अचाणचूको झडग्यो, पानड़ा बेली ताप कर' र पूछ्यो—आचानड़ी मौत कुने स्यूं आई ? रूख रो' र बोल्यो-कठीनै स्यू बताऊँ ? को आती रा खोज मँडै न को जाँती रा! (ट) तू तडा बोल्या-देख्यो रे छाजला थारो स्थाय ! म्हाने तो फटक' र परै बगा दिया' र आं सागो छोड़णियाँ दगावाज दाणां ने कालजिय री कोर कर र राख्या है ? छाज लो कयो-डोफा, थां ने तो हूं बे कसूर मान' र ही छोड्या है, आँ (विसवासघात्याँ) ताई तो चाको' र ॐखली त्यार है। कांटो बोल्यो-मन काढणे तांई तो तू' नागी सुई नै हो ले भाग्यो, की मिनखाचारो तो राख्यां कर ? मिनख कयो-म्हारो कोई दोष ? नामै री रग नाग सू' ही दबै । सुरड़ा देव' र मनसूरड़ा पुजारा ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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