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बक्तृत्वकला के बीज
आदमी इको का है ? मिस है जोलो-..'मरे
तु हो के ? मने अंधेरे में सूझ्यो ही कोनो ! (ख) बायरै कयो- पीपल रा पानड़ा, मैं आऊँ जणां ही थाँके
हताई हुवै के ? पानड़ा बोल्या-पूठ पाछै बात करणरी
म्हारी आदत कोनी ! (ग) तिरियाँ-मिरियाँ भरी तलाई र दूबढ़ी आ' र गलबाथ
घालली। लेरों चिड़' र बोली- तनै कुण । ती ही ? बीच में ही मीडको टर-टर कर' र बोल्यो.-मली,
अपणायत हुवै जका न त ने की अड़ीकै नौं ! (घ) मेणबत्ती कयो-डोरा मैं थारैस्यू कत्तो मोह राखू हूं?
सीधी ही कालजं में ठौड़ दीन्हो है । डोरो बोल्यो
म्हारी मरवण, जणां ही तिल-तिल बलू हूं। (च) मिनख कयो-उलझ्योड़ी जेवड़ी, मैं तनै सुलझा र थारो
कत्तो उपगार करू हूं ! जेवड़ी वोली नू किस्यो' क उपमारी है जको म्हारै स्यूछानु कोनी । कोई और
नै उलझाणे खातर मन्ने सुलझातो इसी ! (छ) पानड़ा कयो-डाला म्हे नहीं हूंता तो थे कत्ती अपरोगी
लागती ? फूल कयो - पानडाँ, म्हे नहीं हूंता तो थे कत्ता अडोला लागता? फल कयो-फलां म्हे नहीं हूंता तो थारो जलम ही अकारथ जातो? फूल में छिप' र बैठ्यो बीज सगला री बात सण' र बोल्यो-भोला, मैं नहीं हूंतो तो थे कोई कोनी हूंता।