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या भाग : पहला कोष्ठक
५७ होने के कारण हरवक्त खुला रहता हूं, और स्वामी को
धूप-हवा आदि देता हूं। ४. सुई से चलनी ने कहा
तेरे में तो छिद्र है । सुई बोली-मेरे में सिर्फ एक छिद्र है, तेरे में तो सारे छिद्र हा चिद्र है, पहले उनको तो
देख! ५. टैगोर की कल्पनाएँ
ऊपर से गिरता हुआ पानी गाता है कि जब मैं स्वतन्त्र हुआ तभी तो मधुर गान कर रहा हूं। (ऐसे ही विकार
मुक्त आत्मा आत्मिक संगीत कर सकता है।) (ख) फूल ने फल से पूछा-तू मेरे से कितना दूर है ? फल
ने कहा-मैं तेरे दिल में ही छिपा हूं।
(इससे कर्म के पीछे फल निश्चित है . यह समझो !) (ग) सत्ता ने विश्व से कहा--तू मेरा है । विश्व ने मान
लिया : किन्तु प्रेम ने सत्ता को कैद करके फिर विश्व से कहा कि मैं तेरा हूं । नम्रवाणी सुनकर विश्व ने प्रेम को अपना संपूर्ण साम्राज्य सौंप दिया। (सत्ता प्रजा के शरीर को और प्रेम प्रजा के दिल कोअधीन करता है। नौकर भी सत्ता के बजाय प्रेम से
काम ज्यादा देते हैं।) ६. गलगनिया के गद्य चित्र(क) सिंझ्या हूंता ही मिनख उठ्यो' र दीये रै मूडे ऊपर
तूली मेल दी । दीयो चट्ट-चट्ट कर' र बोल्यो-बड़ा