________________
་་
1
५. तीचः श्लाघ्यपदं प्राप्य स्वामिनं हन्तुमिच्छति । मूषिको व्याघ्रतां प्राप्य मुनिं हन्तुं गतो यथा ॥
-- हितोपदेश
नीच अच्छे पद को पाकर अपने स्वामी को ही मारना चाहता है । जैसेचूहा बाघ बनकर मुनि को मारने चला ।
कला के बीज
पड़कने बिल्ली दौड़ी।
एक योगी की झोंपड़ी में चूहा फिर रहा था। उसे योगी को दया बाई और मंत्रशक्ति से चूहे को बिलाव बना दिया । बिल्ली तो भाग गई, लेकिन उस पर कुत्ता दोड़ा। योगी ने बिलाव को बाघ का रूप दे दिया। उसे भूख लगी और कृतघ्न योगी को ही खाने के लिए तैयार हुआ । योगी ने कहा - 'पुनको भव' वह बाब तस्काल
चूहा बन गया और दिल्ली आकर उसे खा गई ।
६. कुजात मनायां बांथ पड़े।
सुजात मनायां पगाँ पड़े ॥
T
● हाथी रा दांत, कुत्ते री पूंछ और कुमारास रो जीभ सदा आंटी ही रेवे ।
-- राजस्थानी कहावत
७. वरं प्राणत्यागो न पुनरघमानामुपगमः ।
मर जाना मला पर नीच का सङ्ग अच्छा नहीं ।
८. नीन चंग सम जानिबो, सुनि लखि "तुलसीदास " । ढील देत महि गिर परत खेचत चढ़त अकास ॥
I
x