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________________ २७ १. परवादे दशवदनः पररन्धनिरीक्षणे सहस्राक्षः । सद्वृत्त वित्तहरगों बाजुनी ॥ - सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ५६ नीच व्यक्ति परनिन्दा करने के लिए दशवदन ( दस मुंहवासा - रावण) है, पर-दि देखने के लिए सहस्राक्ष ( हजार नेत्रोंवाला- इन्द्र ), ओर दूसरों का सदाचाररूपी धन हरने के लिए महलबाहु (हजार भुजाओंवाला अर्जुन) है। २. यस्मिन् देशे समुत्पन्नस्तमेव निज- चेष्टितैः । घुणकीट दूषयत्यचिरेणैव अधम ( नीच) पुरुष इवाधमः ॥ -सुभाषितरत्नभाण्डागार पृष्ठ ५६ घुण (कीट) जिस लकड़ी में पैदा होता है, उसी का ख़राब करता है । ऐसे ही नीच व्यक्ति दुराचरणों द्वारा अपने ही वंश को दूषित करता है । ३. चरणका इव नीचा, नोदरस्थापिता अपि नाविः कुर्वाणास्तिष्ठन्ति । - नीतिवाक्यामृत २७/३० नीच मनुष्य वर्णों के समान हैं, जो पेट में रखने पर भी आवाज किए बिना नहीं टिकते | ६५ ४. बहुत किये हू नीच को, नीच सुभाव न जात छांडि ताल जलकुम्भ में कौआ चोंच भरात ॥ -- कवि
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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