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१. परवादे दशवदनः पररन्धनिरीक्षणे सहस्राक्षः । सद्वृत्त वित्तहरगों बाजुनी ॥
- सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ५६ नीच व्यक्ति परनिन्दा करने के लिए दशवदन ( दस मुंहवासा - रावण) है, पर-दि देखने के लिए सहस्राक्ष ( हजार नेत्रोंवाला- इन्द्र ), ओर दूसरों का सदाचाररूपी धन हरने के लिए महलबाहु (हजार भुजाओंवाला अर्जुन) है।
२. यस्मिन् देशे समुत्पन्नस्तमेव निज- चेष्टितैः । घुणकीट
दूषयत्यचिरेणैव
अधम ( नीच) पुरुष
इवाधमः ॥ -सुभाषितरत्नभाण्डागार पृष्ठ ५६
घुण (कीट) जिस लकड़ी में पैदा होता है, उसी का ख़राब करता है । ऐसे ही नीच व्यक्ति दुराचरणों द्वारा अपने ही वंश को दूषित करता है ।
३. चरणका इव नीचा, नोदरस्थापिता अपि नाविः कुर्वाणास्तिष्ठन्ति । - नीतिवाक्यामृत २७/३०
नीच मनुष्य वर्णों के समान हैं, जो पेट में रखने पर भी आवाज किए बिना नहीं टिकते |
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४. बहुत किये हू नीच को, नीच सुभाव न जात छांडि ताल जलकुम्भ में कौआ चोंच भरात ॥
-- कवि