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१. दग्धं दग्धं पुनरपि पुनः काञ्चनं कान्तवर्ण घृष्टं घृष्टं पुनरपि पुनदचन्दनं चारुगन्धम् । छिन्नंन्नि पुनरपि पुनः स्वाददं नेक्ष खण्ड, प्राणान्तेऽपि प्रकृति-विकृतिर्जायते नोत्समानाम् ॥
उरुष का स्वभाव
बार-बार जलाने पर सोना अधिक चमकीला बनता है, बार-बार घिसने पर चन्दन अधिक सुगन्ध फैलाता है। बार-बार काटने पर इक्षुखण्ड अधिक मीठा स्वाद देता है-तत्व यह है कि प्राणान्त कष्ट में भी उत्तमपुरुषों की प्रकृति में विकार नहीं आता ।
२. गव्हां चा आटा आणी कुपव्या चा बेटा |
सताने पर भी उत्तम उत्तम ही फल देता है | ३. आपला र्ति - प्रशमन फलाः संपदो ह्यतमानाम्
- मराठी कहावत
- मेघदूत १०५३
उत्तमपुरुषों की संपत्तियों, दुःखितों के दुःखों को शान्त करने के लिए ही होती हैं ।
४. युजन्त्युत्तमसत्वा हि प्राणानपि न सत्पथम् ।
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- कथासरित्सागर
उत्तमपुरुष प्राणों का त्याग कर देते हैं, लेकिन मार्ग का नहीं । ५. प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचः, प्रारभ्य विघ्नविता विरमन्ति मध्याः । विघ्नः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना, प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ॥
-भतृहरि नीतिशतक २७