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________________ उत्तमपुरुष १. गुणस्त्तमतां यान्ति, नोच्दैरासनसंस्थिताः । प्रासादशिख रारूढः, काकः किं गरुडायते ॥ --चाणक्यानोति १६६ ऊचे आसन पर बैटने-मात्र में मनुष्य उत्तम नहीं बन जाता, गुणों से बढ़ता है । क्मा महल के शिखर पर बेठने से काम गरुड़ बन जाता है ? कभी नहीं। २. सर्वोत्तम मनुष्य वे ही है, जो अवसरों की बाट न देवकर इनको अपने दास बना लेते हैं। ----. एस. पा ३. भल करता गणेल सरस, गणेल करतां फरेल सरस अनें फरेल करतां कषायेल सरस । -गुजरातो कहावत ४. जलेर् मध्ये गंगाजल, फलेर मध्ये आम ! नारीर् मध्ये सीता सती, पुरुषेर् मध्ये राम ।। --नंगला कहावत ५. झाड़ी-बंको झाबुवो, रणबंको कुशलेश। नारी-बको पुग्मल तणी, नर बंको मरुधर देश । ६. उत्तमपुरिसा तिविहा पगाता, तं जहा-धम्मपुरिसा, भोगपुरिसा, कम्मपुरिसा-१. धम्मपुरिसा-अरिहंता, २. भोगपुरिसा-चक्कघट्टी, ३. कम्मपुरिमा-वासुदेवा। --स्थानांग ३।१११२८ उत्तम पुरुष तोन प्रकार होते हैं—(१) धर्मपुरुष (२) भोगपुरुष (३) कर्मपुरुष । धर्मपुरुष-तीर्थ तर, भोगपुरुष-बक्रवर्ती और कर्मपुरुषवासुदेव माने जाते हैं।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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