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सर्व प्रथम वि० स०,२३ में श्री डूंगरगढ़ के श्रावकों ने इसे धारना शुरू किया । फिर थली, हरियाणा एवं पंजाब के अनेक ग्रामों-नगरों के उत्साही युवकों के तीन वर्षों के अधकपरिश्रम से धारकर इसे प्रकाशन के योग्य बनाया।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि पाठकगण इसके अध्ययन, चिन्तन एवं मनन से .. अपने बुद्धि वैभव को क्रममाः बढ़ात जायेंगे--
वि० सं० २०२७, मृगसर बदी ४ मङ्गलवार, रामामंडी, (पंजाब)
--श्रममुनि 'प्रथम'