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स्मृति एवं नीति के हृदयग्राही श्लोक हैं, वहाँ सर्वसाधारण के लिए सीधी-सादी भाषा के दोहे, छन्द, सूक्तियां, लोकोक्तियां, हेतु दृष्टान्त एवं छोटी-छोटी कहानियाँ भी हैं । अतः यह ग्रन्थ निःसंदेह हर एक व्यक्ति के लिए उपयोगी सिद्ध होगा ऐसी मेरी मान्यता है । बक्ता, कवि और लेखक इस ग्रन्थ से विशेष लाभ उठा सकेंगे, क्योंकि इसके सहारे वे अपने भाषण काव्य और लेख को ठोस, सजीव, एवं हृदयग्राही बना सकेंगे एवं अद्भुत विचारों का विचित्र चित्रण करके उनमें निखार ला सकेंगे, अस्तु !
ग्रन्थ का नामकरण — इस ग्रन्थ का नाम 'वक्तृत्वकला के बीज' रखा गया है । अतृत्वकला की उपज के निमित्त यहां केवल बीज इकट्ठे किए गए हैं। बीजों का बनकर कर बता [ बीज बोनेवालों ] की भावना एवं बुद्धिमत्ता पर निर्भर करेगा। फिर भी मेरी मनोकामना तो यही है कि बप्ता परमात्मपदप्राप्तिरूप फलों के लिए शास्त्रोक्तविधि से अच्छे अवसर पर उत्तम क्षेत्रों में इन बीजों का वपन करेंगे । खस्तु !
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यहां मैं इस बात को भी कहे बिना नहीं रह सकता कि जिन ग्रन्थों, लेखों, समाचार पत्रों एवं व्यक्तियों से इस रन्थ के संकलन में सहयोग मिला हैवे सभी सहायक रूप से मेरे लिए चिरस्मरणीय रहेंगे ।
विषयों का सकलन आचार्यश्री तुलसी फरमाया कि
यह ग्रन्थ कई भागों में विभक्त है एवं उनमें सैकड़ों है । उक्त संग्रह बालोतरा मर्यादा महोत्सव के समय मैंने को भेंट किया। उन्होंने देखकर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की एवं इसमें छोटी-छोटी कहानियाँ एवं घटनाएँ भी लगा देनी चाहिये ताकि विशेष उपयोगी बन जाएं। आचार्यश्री का आदेश स्वीकार करके इसे संक्षिप्त कहानियाँ तथा घटनाओं से सम्पन्न किया गया ।
मुनि श्री चन्दनमलजी, डूंगरमलजी, नथमलजी, नगराज जी, मधुकरजी, राकेशजी, रूपचन्दजो आदि अनेक साधु एवं साध्वियों ने भी इस ग्रन्थ को विशेष उपयोगी माना । बोवासर महोत्सव पर कई संतों का यह अनुरोध रहा कि इस संग्रह को अवश्य घरा दिया जाए !