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निर्भीक कवि 'गंग' संसार से विरक्त होने के पश्चात् 'कवि गंग' को एक बार बादशाह र ने एच: समस्या "करो मिलि आश अकबर की" को पूर्ति के लिए कहा- कवि गंग ने तत्काल उक्त छन्द द्वारा समस्या की पूर्ति कर दी। एक कु छोड़ दूजे कु भजे, ___रसना जु कटो उस लब्बर की। अब के गुनियां दुनियां कु भजे,
सिर बांधत पोट अदब्बर की ।। कवि गंग तो एक गोविन्द भजे,
कछु शंक न मानत जब्बर की। जिनको हरि की परतीत नहीं,
सो 'करो मिलि आस लकब्बर की' ।।१।। अफब्बर बे अकब्बर ! नरहंदा नर । के होजा मेरी स्त्री, के होजा मेरा बर । एक हाथ में घोड़ा, और एक हाथ में खर। कहना है सो कह दिया, अब करना है सो कर ॥२॥ उक्त छंद को सुनते ही बादशाह क्रोधित हो उठा और उसने कवि 'गंग' को हाथी के पैरों तले कुचलवाकर
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