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रसिकश्रोताओं के अभाव में कवि
१. इतरपापशतानि यदृच्छया, वितर तानि सहे चतुरानन ! निवेदनं,
सिरसि मा लिख मा लिख ! मा लिख !!
अरसिकेषु कवित्व
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दे, मैं सहन कर लूंगा, लेकिन सुनाना मेरे भाग्य में कभी मत कभी मत लिख !!
हे ब्रह्म भगवन् ! दूसरे सैकड़ों पापों की बक्शीस भले ही कर अरसिकों के आगे कविता लिख ! कभी मत शिख !
२. कविराजां! खेती करी, हल स्युं गीत जमीं में गाड दयो, ऊपर
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राखो हेत ।
रालो रेत ॥
- राजस्थानी दोहा
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