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पांचवा भाग : चौया कोष्टक
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७. मानवजीवन के पांच रन है - ( १ ) प्रेम अर्थात् मिलनसारी, (२) मित्रता - अकोध-भाव, (३) शान्ति-भाव - क्षमा ( ४ ) संगम - नियमितता (५) समता-संतोष । ८. पात्रे दानं सतां सङ्गः फलं मनुष्यजन्मनः ।
- सुकरत्नावली मनुष्यजन्म का फल है--- सुपात्र को दान देना और सत्संग करना । ६. जिह्व ! प्रतीभव त्वं सुकृति सुचरितोच्चारणे सुप्रसन्ना, भूयास्तामन्यकीति श्रुति रसिकतया मेऽद्यकर्णौ सुकरण । ates प्रीलक्ष्मा तमुपचित लोचने । रोचनत्वं, संसारेऽस्मिन्नसारे फलमिति भवतां जन्मनो मुख्यमेव || - शान्तसुधारस, प्रमोदभावना १४
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हे जीभ ! धार्मिकों के दानादि गुणों का गान करने में अत्यन्त प्रसन्न होकर तत्पर रहो। कानों दूसरों की कीर्ति सुनने में रसिक होकर सुकर्ण (अच्छे कान) बनो नेत्रों ! दूसरों का बढ़ती हुई लक्ष्मी को देखकर प्रसन्नता प्रकट करो। इस असार-संसार में जन्म पाने का तुम्हारे लिए यही मुख्य फल है ।
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