SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवा भाग : चौया कोष्टक २५५ ७. मानवजीवन के पांच रन है - ( १ ) प्रेम अर्थात् मिलनसारी, (२) मित्रता - अकोध-भाव, (३) शान्ति-भाव - क्षमा ( ४ ) संगम - नियमितता (५) समता-संतोष । ८. पात्रे दानं सतां सङ्गः फलं मनुष्यजन्मनः । - सुकरत्नावली मनुष्यजन्म का फल है--- सुपात्र को दान देना और सत्संग करना । ६. जिह्व ! प्रतीभव त्वं सुकृति सुचरितोच्चारणे सुप्रसन्ना, भूयास्तामन्यकीति श्रुति रसिकतया मेऽद्यकर्णौ सुकरण । ates प्रीलक्ष्मा तमुपचित लोचने । रोचनत्वं, संसारेऽस्मिन्नसारे फलमिति भवतां जन्मनो मुख्यमेव || - शान्तसुधारस, प्रमोदभावना १४ ! हे जीभ ! धार्मिकों के दानादि गुणों का गान करने में अत्यन्त प्रसन्न होकर तत्पर रहो। कानों दूसरों की कीर्ति सुनने में रसिक होकर सुकर्ण (अच्छे कान) बनो नेत्रों ! दूसरों का बढ़ती हुई लक्ष्मी को देखकर प्रसन्नता प्रकट करो। इस असार-संसार में जन्म पाने का तुम्हारे लिए यही मुख्य फल है । । Xx *
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy