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________________ वस्तृत्वकला के बीज रावण का यश संकुचित रहा और राम सुम के पात्र बने । यह मारा आदिकवि श्री वाल्मीकि का ही प्रभाव है। अतः राजाओं को चाहिए कि वे कवियों को कभी नाराज न करें । ५. भीमा तू भाठोह, मोटा भाखर मांयलो । __ कर राखू फलोह, शंकर ज्यू मेवा करू ।। ६. राणा तू तो राख', मोटा चूल्हा मायली। कुल उजवालण काख, कासी ज्यू करणो शरां ।। ७. घर स भवा नोकल्या, चक गया सल्ला । खाटु भाटा नीपजे, अन्न कठं अल्ला ॥ -राजस्थानी सोरठे ८, यह काम है केवल कवियों का, पानो में आग लगा देना। पत्थर को मोम बना देना और आग में बाग लगा देना ।। ----पृथ्वीराज नाटक
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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