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कवियों के लिए विचारणीय बातें
- १. कविता करणी खेल नहि, खरो खिलाणों साँप ।
भूल कां मुख पर लग, आ चनपट चुपचाप ।। दग्धाक्षर रो राखणो, पूरी-पूरी ख्याल । रतनचन्दजी नी परै हुवे अन्यथा हाल' ।। नहीं करणी लेम-इ-र-भ-ख, ग़न्य की कमान । फ्ण स्तुतियां में खासकर, नहिं राखीजै स्यांत ।।
-सावधानी से समुद्र, १६.४-५-६
"रतनचन्द नागोर में रे चेनियां !"-.इस पद्म की रचना के वाव अनि रतनचन्द जी ने बिहार विया एवं जङ्गल में चोरों ने उन के कपड़े छीन लिए । यहाँ नागोर में अर्थात् नागोर शहर में-यह अर्थ है, लेकिन 'नागो-रमें' अर्थात् नङ्गा खेल रहा है--यह अर्थ भी निकलता है । इस प्रकार अनिष्ट अर्थ निकल सके-ऐसो पद्यरचना से कवि को बचना चाहिए ।
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