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कवियों की शक्ति
१. कवि की आँख स्वर्ग से भूतल और भूतल से स्वर्ग तक
को देख लेती है ।
- शेक्सपियर
२. जहाँ न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि ।
7.
४.
- हिन्दी कहावत
कनकलि ।
मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम् ॥ स्रवन्मूत्रक्लिन्नं करिवरकरस्पधि जघनमहो ! निद्य ं रूपं कविजन विशेषगुरुकृतम् ॥ - हरिवंशग्यशतक २०
स्त्रियों के स्तन मांस की गायें हैं, उन्हें स्वर्ण कलश के समान कह दिया । मुख थूक खंखार का घर है, उसे चन्द्रमा तुल्य कह दिया तथा जायें, जो मूत्र से भींगी रहती हैं, उन्हें हाथी की सूंड से भी बढ़कर बतला दिया । अहो ! कविजनों ने ऐसे निदनीय रूप को भी कितना बढ़ा-चढ़ाकर बताया है ?
लापतेः संकुचितं यशो वद्,
यत्कीर्ति पात्र रघुराजपुत्रः । स सर्वमेवादिकवेः प्रभावो, न कोपनीयाः कवयः क्षितीन्द्रः ॥
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- विल्हूणकषि