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________________ वक्तृत्वकला के बीज अपने मित्रदेव के साथ आचार्य श्री के पास जाया करता हूं, मैंने कहा तू मुझे दर्शन कैसे करवाएगा ? उसने कहा, आग टिकिट लेकर केवल गाड़ी में बैठ जाइए । फिर मैं अपने आप संभाल लूंगा । गुरुदेव ! मैं उसका विश्वास करके गाड़ी में बैठ गया, गाड़ी रवाना होते ही मैं पूर्णस्वस्थ हो गया और आपके चरणों में पहुँच गया । -धनमुनि २० श्रीभिक्षुस्वामी के स्मारक को उपलब्धि जनश्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्य श्रीभिक्षु स्वामी का स्वर्गवास वि० सं० १८६० भाद्र सुदी १३ के दिन सिरयारी (मारवाड़) में हुआ था । १३ सांडी मंडी बनाई गई, १४० गाँवों के आदमी इकट्ठ ९५ एवं नदी के किनारे अग्निसंस्कार किया गया। वहां एक स्मारक बनाया तो गया था, लेकिन सिरियारी के श्रावकों की स्थिति बदल जाने से (कहा जाता है कि सिरियारी में तेरापंथी श्रावकों के जो ७०० घर थे वे प्रायः दक्षिण में व्यापार्थ चले गये और अब वहाँ केवल ३०-३५ घर ही रह गये हैं।) उसकी सार, संभाल यहां तक नहीं हुई कि वह स्मारक कहाँ है और कौनसा है ? यह भी पता नहीं रहा । तेरापंथ-द्विशताब्दी के अवसर पर पुराने स्मारकों का अन्वेषणकार्य युवकवर्ग ने संभाला। सम्पतकुमार गर्धया एवं मन्नालाल बरडिया आदि सिरियारी पहुंचे । काफी खोज की गई, किन्तु स्मारक का पता नहीं लगा। जिसे लोग थीभिक्ष स्वामी का स्मारक मान रहे
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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