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पांचवा भाग : तीसरा कोष्ठक
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थे, उस पर वहाँ के 'गुरांसा' 'हमारे पूर्वजों का है।' ऐसा दावा करने लगे। रात को स्मारक की चर्चा करते. करते सब सो गये । प्रातः उठकर वे युवक लोग शौचार्थ जङ्गल गये । चर्चा वहीं चल रही थी, वे नदी के किनारे एक बीरान पहाड़ी-ढाल पर पहुँचे और स्मारक की खोज में हाथ-पैर मार रहे थे ; इतने में सफेद बाल, झुकी कमर
और चमकीली आखोंबाला एक बूढ़ा (जंगली-सा) आदमी पहाड़ी से उतारका नीचे आया और पूछने लगा-'भाई। क्या हूँढ़ रहे हो? सबने सिर झुकाकर कहा 'बाबा। स्वामी जी का स्मारक !' बाबा--'कौनसे स्वामीजी का ?' युवक-तेरापंथ के आदि गुरु 'श्रीभिक्ष स्वामी का। बाबा--'हाँ हाँ, था तो सही, भाई ! मैं अपने दादागुरु के साथ यहाँ अनेक बार आया करता था और दादागुरु कहते भी थे कि जिसमें एक नया पंथ चलाया है यह उस 'बाजे' का चबूतरा है ।" युवक-'बाबा ! यह कहाँ है ?' बाबा ने अंगुली लगाकर कहा-'इस स्थान पर होना चाहिए।' बस, सभी युवक जुट गये और लोटों से मिट्टी खोदने लगे। कुछ ही क्षणों में एक ईट निकली और बाद में चबूतरा भी प्रकट हो गया, जो तीन तरफ ठीक था, एक
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