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________________ पासवां भाग : तीसर कोष्ठक २११ काफी परेशानी हो रही थी। उस समय अष्टमाचार्य कालूगणी को आवाज आई-चिंता मत कर, ओड़कर सो जा ! आचार्यश्री सो गये । खांसी बिल्कुल बन्द थी। कुछ देर बाद पुनः विवार लाया कि कालूगरणी की आवाज नहीं आई, केबल मन का भ्रम था। बस, खांसी पहले में भी अधिक चलने लगी। प्राचार्यश्री बहुत खित्र हो गये और मोचने लगे कि जो सन्देह किया वह मेरी गलती हुई । इतना-सा सोचने के साथ ही नोंद आगई। प्रातः उठे तो खांसी का नाम-निशान भी नहीं थी। -आचार्यश्री तुलसी से श्रुत १५. खाटू का वृद्ध श्रावक-मभवतः वि. सं. २००१ मिगसिर की बात है | रात को हम कई साधु आचार्य श्री तुलसी की सेवा में बैठे थे और देवताओं की बातें चल रही थीं। आचार्य श्री ने फरमाया कि अभी कुछ दिन पहले 'वाद' मे एका वः श्रावक दर्शनार्थ यहां लापर! आगये । मैंने उनमें साश्चयं पूछा-आँखों से तुम्हें पुरा दीखता नहीं, चलने की तुम्हारी शक्ति नहीं और बवासीर रोग से तुम पीड़ित हो, इस हालत में अकेले दर्शनार्थ कैसे आये ? उन्होंने कहा-गुरुदेव ! दर्शन की अभिलाषा बहुत दिनों से लग रही थी, लेकिन साधन के अभाव में उसकी पूर्ति नहीं हो सकी। एक दिन रात के समय छोटा बेटा ( जो मर चुका था ) दृष्टिगोचर हुआ और कहने लगा, पिताजी ! चलिये मैं करवा लाऊं आपको दर्शन ! मैंने पूछा तू कहाँ _ . है ? उसने कहा-व्यंतरदेवता की योनि में है। कई बार
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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