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________________ २७ नरक में जाने के कारण १. चहि ठागहि जीवा पोरइयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा महारंभत्राए, महापरिगह्याए, पंचिदियबहेणं, कुणिमाहारेणं । --स्थानांग ४१४१३७३ चार कारणों से जीव नरक के योग्य आयूष्य का उपार्जन करते हैं। यथा-१ महाआरम्भ से, २ महारिग्रह से, ३ पञ्चेन्द्रिय जीवों का बध करने से, ४ मद्य-मांस का आहार करने से । २. त्रिविध नरवास्येदं, हारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोम्तथा लोभ-स्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ।। -गोता १६।२१ काम नोव और लोभ-ये तीन नरक के द्वार हैं। ३. पंचहिं ठा गोहें जीका दुग्गई गच्छनि त जा-पागाइवाएवं जात्र परिम्गहेगा। -स्थानात ११३६१ पांच कारणों से जीव दुर्गति में जाता है-प्राणातिपात से यावत् परिग्रह से।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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