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________________ पांचवां भाग : तीसरा कोष्यक १८६ की गति से चलती हुई आंधी में घूमते हुए बड़े-बड़े वृक्षों एवं "हाड़ों के बीच में एक राई का दाना घूम रहा है । आकाशगंगा से आगे जो चमकते हुए शिवारं दिखाई देते हैं, उनमें से प्रत्येक सितारा एक-एक ब्रह्माण्ड है। ऐसे कितने ब्रह्माण्ड हैं, यह किसी को पता नहीं है। कहा जाता है कि लगभग १० हजार करोड़ ब्रह्माण्ड ता] वैज्ञानिकों ने गिन लिए हैं। कई सितारे तो पृथ्वी से इतने दूर हैं कि १ लाख ८३ हजार मील प्रतिसेकिण्ड की गति से चलने वाली उनकी रोशनी यहाँ अरबों वर्षों तक भी नहीं पहुंच सकती । इन सबसे परे भी कितने खरब ब्रह्माण्ड और हैं, उनका अभी तक कोई पता नहीं लगा है और न कभी लग सकता है । अस्तु, इस अनन्त सृष्टि पर ज्यों-ज्यों विचार किया जाता है त्यों-त्यों हैरानी होती है और दिमाग चक्कर खाने लगता है । हमारी यह हृदयमान पृथ्वी एक सिरे से दूसरे सिरे तक ७९२७ मील चौड़ी है इस पर ३५० करोड़ से भी अधिक मनुष्य रहते हैं। नींद पृथ्वी से लगभग ढाई लाख मील दूर हैं ( मिलाप, २१ मई १९६६ के सम्पादकीय लेख के आधार पर । ) *
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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