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________________ २५ १. नरकः पापकर्मिणां यातनास्थानेषु । २. नरक संसार - सुत्रकृतांग भूत २ अ. १ टोका पापी जीवों के दुःख भोगने के स्थानों के अर्थ में नरक शब्द का प्रयोग होता है। अहेलोगेण सत्त पुवीओ पन्नत्ताओ......एयासिणं सत्तष्ठं पुढवीणं सत्त रणामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मा, बंसा, सेला, अंजणा रिट्ठा, मघा माघवती । -स्थानांग ७ अमोलोक में सात पृथ्वियाँ हैं, उनके ये सात नाम हैं 1 १ घमा, २ वंशा, ३ शेला, ४ अञ्जना, * रिच्ठा, ६ मघा, ७ माघवती । ३. एवासिणं सत्तह पदवीणं सत्त गोता पण्णत्ता तं जहासक्करपभा, बालुकापभा पंकसभा, रय गुष्पभा, धूमप्यभा, तमा, तमतमा । -स्थानांग ७ इन सातों पृथ्वियों के सात गोत्र हैं-१ रत्नप्रभा, र शर्कराप्रभा, ३ बालूकाप्रभा ४ पद्मप्रभा ५ म्रप्रभा, ६ तमः प्रभा ७ तमतमाप्रभा । (शब्दार्थ से सम्बन्ध न रखनेवाली अनादिकाल से प्रचलित संज्ञा को नाम कहते हैं। शब्दार्थ का ध्यान रखकर किसी का जो नाम दिया जाता है, उसे गोत्र कहते हैं । घमा आदि सात पृथ्वियों के नाम हैं और रत्नप्रभा आदि गोत्र हैं । - प्रज्ञापना र टीका १६०
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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