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संसार की विशालता चौदह रज्ज्वात्मक संसार कितना बड़ा है, इसको समझाने के लिये जैनशास्त्र (भगवती ११॥ ०) में छः देवों का दृष्टान्त दिया गया है, वह इस प्रकार है
जम्बूद्वीप की परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष्य और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है । अव कल्पना कीजिये कि महान् ऋद्धिवाले छः देवता जम्बूद्वीप के मेरुपवन की चूलिका को घेर कर खड़े हैं । इधर चार दिक्कुमारियां, (देत्रियां हाथों में बलिपिण्ड लेकर जम्बूद्वीप की आय योजन ऊँची जगती पर चारों दिशाओं में बाहर की तरफ मुख करके खड़ी हैं। वे एक ही साथ चारों बलिपिण्डों को नीचे गिरायें । उस समय उन छहों देवों में से हर एक देवता मेरुचूलिका गे अपनी शीघ्रतर गति द्वारा नीचे आकर पृथ्त्री तक पहुँचने से पहले ही उन चारों बलिण्डिों को ग्रहण करने में समर्थ है । बलिपिण्ड जितनी देर में देवियों के हाथों से छूटकर जमीन तक आठ योजन भी नहीं आ पाते, उतनी-सी देर में वह देवता मेलिका से लास्न योजन तो नीचे आजाता है और लगभग सवा
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